शनिवार, 5 मई 2012

शिव दत्त सती की कुमाउनी गज़ल का हिंदी अनुवाद

कवि- शिव दत्त सती
(संवत- 1848)
हिंदी रूपांतर- विक्रम नेगी “बूँद”

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शिव दत्त सती, फल्द्याकोट-रानीखेत, अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के कवि थे, ये हमेशा धार्मिक अंधविश्वासों से दूर रहा करते थे, जीवन के कटु अनुभवों तथा सामाजिक वितंडावादों ने उनके ह्रदय को असह्य वेदना पहुचाई, यही कारण है कि उनके साहित्य में सामाजिक कुरीतियों की निंदा तथा अंधविश्वासों का खंडन भी यत्र-तत्र पाया जाता है.......आपके सम्मुख उनकी एक गज़ल का हिंदी रूपांतर करके प्रस्तुत कर रहा हूँ......
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मूल कुमाउनी गज़ल-
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हमार कैबेर धर्मकी बात छिपाई नि जानि
साँची बात झूठी ले यो बताई नि जानि

गिरिराजज्युकि काथक विश्वास नि ऑन्
आंगुल में पर्वतेकी धार उठायी नि जानि

मरियम का गर्भ बटिक भ्यो इसुमसीह
परमेश्वरक पुत्र छ कबेर बताई नि जानि

कुरआनमें लेखों छ कौनी कतल करो कफिरनक
इश्वरेकी यसी आज्ञा तौ पाई नि जानि

आपुण अर्थाक लिजी बिन अपराध
बिस्मिल्लाह करिबेर कैकी ज्यान कटाई नि जानि

द्यापुतोंकी लिजी पुण्य समझी त्यारक दिन
बकोरोक खोर आंग हैं छनकाई नि जानि

मिथ्या बातों पर "शिवदत्त शर्मा" विश्वास नि करना
वेदांत  मर्यादा हमर कैबेर गंवाई नि जानि

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हिंदी रूपांतर-  
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अपना कहकर बात धर्म की नहीं छिपाई जाती
सच्ची बातें झूठी भी ये नहीं बताई जाती

गिरिराज के किस्से का विस्वास नहीं होता है,
ऊँगली में पर्वत की चोटी नहीं उठाई जाती.

गर्भ से मरियम के जन्मे थे जीसस, और ये बात,
परमेश्वर का पुत्र है कहकर नहीं बताई जाती.

लिखा है कहते हैं कुरान में “क़त्ल करो काफ़िर का”
ईश्वर की ऐसी आज्ञा तो कहीं न पाई जाती.

बिन अपराध किसी की अपने लाभ के लिए,
बिस्मिल्लाह  करके यों जान न खाई जाती.

ईश्वर के लिए पुण्य समझकर भी त्यौहार के दिन,
मंदिर में बकरी की लाशें नहीं बिछाई जाती.

"शिव दत्त" झूठी बातों पर विश्वास न करना,
अपना कहकर वेद मर्यादा नहीं गवाई जाती.  
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नोट- अक्षरशः अनुवाद नहीं किया है, भावार्थ को अनुवाद का आधार बनाकर कोशिश की है, अपनी प्रतिक्रियाओं और सुझावों से अवगत कराएँ....धन्यवाद.

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सार्थक पोस्ट , अनुवाद भी अच्छा - सच्चा , इनको पढाने के लिए धन्यवाद विक्रम ||

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