शनिवार, 5 मई 2012

ये ख़्वाब ही तो हैँ...



















ये ख़्वाब ही तो हैँ
जो इन आँखोँ को सूकून देते हैँ
ये पल दो पल का मिलना
यादोँ की बस्तियाँ बसा लेता है
ख़्वाबोँ के नगर मेँ....

ये ख़्वाब ही तो हैँ
जो जलाए रखते हैँ...लौ
ज़िँदा रहने की लालसा की....

सहेज़ लो इन पलोँ को
समेट लो.
ज़िँदगी के बड़े से कमरे मेँ
एक अलमारी
इनके लिए भी रखवा दो
पूरा कमरा महकेगा
ज़िँदगीभर
इनकी ख़ुशबू से....।
............
(बूँद)
21-01-2011
डीडीहाट

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