काले अक्षर
विक्रम नेगी की कविताओं और ज़ज़बातों का ठिकाना
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शनिवार, 5 मई 2012
उड़ने दो ख़्वाबोँ के परिँदोँ को....
पंख लगा दो
परकटे ख़्वाबोँ को
उम्मीदोँ के...
सुलगा दो
दिल की अँगीठी को
हौँसलोँ की हवा से...
उड़ने दो
ख़्वाबोँ के परिँदोँ को
आज इसक़दर
कि कोई न कह सके-
ख़्वाब गुब्बारे हैँ....।
........
(
बूँद)
21-01-2011
डीडीहाट
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