लोकतंत्र के आप समर्थक.
वोट दिया, पर गया निरर्थक.
आप वहीँ हैं, जहाँ पै मैं हूँ.
देखो कहाँ पहुँच गए वो ठग.
जिनके पीछे आप चले थे.
कहाँ पहुच गए उनके वो पग.
आप बूथ तक गए थे पैदल.
वो तो उड़ गए, वो तो थे खग.
उनको तो कुर्सी भी मिल गयी.
आपके पाँव अभी भी डगमग.
समय है खुद को भी पहचानो.
समझो अपनी भी दुखती रग.
लोकतंत्र है बना लोक से.
तंत्र बदल दो, आपका ये जग.
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विक्रम नेगी "बूँद"
दिनांक १४-०३-२०१२
समय- ०१:५८ प्रातः.
(डीडीहाट)
सटीक
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