काले अक्षर
विक्रम नेगी की कविताओं और ज़ज़बातों का ठिकाना
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शनिवार, 5 मई 2012
कायर हूँ मैँ....
कायर हूँ मैँ
,
डरपोक
,
बेहद लाचार
,
एक थका हुआ शरीर
,
एक जलती हुई सिगरेट
,
भीतर आग
,
बाहर धुआँ
,
बातेँ
,
बातेँ
,
बातेँ
,
सुलगता हूँ
,
जलता हूँ
,
और राख हो जाता हूँ.....
.........
"
बूँद"
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