शनिवार, 5 मई 2012

लिख पाया नहीँ नज़्म, कहो तो ये ग़ज़ल दूँ...



तस्वीर मेँ कोई अलहदा रंग कैसे मैँ मल दूँ.?
आदत है पुरानी ये, कहो कैसे बदल दूँ?

हर बार ये कहती हो सुना दो कोई तो नज़्म।
लिख पाया नहीँ नज़्म, कहो तो ये ग़ज़ल दूँ।।

ग़ुज़री है उदासी मेँ मेरी सारी ज़िँदग़ी।
तुम आओ! इसे अब ख़ुशी के एक दो पल दूँ।।

मुश्किल है रहग़ुज़र मेँ सफ़र तन्हा ग़ुज़रना।
मिलता नहीँ सूकूँ, कहो किस राह को चल दूँ?

कहती हो रहो ख़ुश, हमेशा मुस्कुराओ "बूँद"
तुम ही कहो, इस बूँद को मैँ कैसी शकल दूँ?
...............
"बूँद"
1 अक्टूबर 2009
(पिथौरागढ़)

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