अपना पसीना तेल है प्यारे
सब पैसे का खेल है प्यारे
ख़बरेँ आमदनी का ज़रिया
भाड़ मेँ जाये सोच नज़रिया
नहीँ पसीने का कोई मोल
बुरे वचन तू अब मत बोल
सब कुछ अच्छा कहता जा रे
हो जायेँगे वारे न्यारे
जनता की चीखोँ को छोड़
देख वो छीँक रहा अमिताभ
आम नहीँ बस खास को देख
अगर तुझे पाना है लाभ
सच को अब सूली पे लटका
ख़बर दिखा-विज्ञापन गटका
जो मिल जाये खाता जा रे
बस विज्ञापन लाता जा रे
महंगाई की ख़बरेँ छोड़
महंगी शादी देखने दौड़
क्या रखा है महंगाई मेँ
ख़बर छिपी है शहनाई मेँ
छोड़ दे अब ये चीख़ पुकार
सीख ले कहना "जी सरकार "
नेताओँ के समझ इशारे
नोट पकड़ और लगा दे नारे
दूध पिला कभी गणेश जी को
कभी दिखा दे मीठा पानी
झूठ को भी सच बतलाने मेँ
मत करना तू आना कानी
लेखन तो है एक व्यापार
पैदल मत चल ले ले कार
बस ऐसा ही करता जा रे
अपनी जेबेँ भरता जा रे...
................
"बूँद"
20.04.2008
(पिथौरागढ़)
सब पैसे का खेल है प्यारे
ख़बरेँ आमदनी का ज़रिया
भाड़ मेँ जाये सोच नज़रिया
नहीँ पसीने का कोई मोल
बुरे वचन तू अब मत बोल
सब कुछ अच्छा कहता जा रे
हो जायेँगे वारे न्यारे
जनता की चीखोँ को छोड़
देख वो छीँक रहा अमिताभ
आम नहीँ बस खास को देख
अगर तुझे पाना है लाभ
सच को अब सूली पे लटका
ख़बर दिखा-विज्ञापन गटका
जो मिल जाये खाता जा रे
बस विज्ञापन लाता जा रे
महंगाई की ख़बरेँ छोड़
महंगी शादी देखने दौड़
क्या रखा है महंगाई मेँ
ख़बर छिपी है शहनाई मेँ
छोड़ दे अब ये चीख़ पुकार
सीख ले कहना "जी सरकार "
नेताओँ के समझ इशारे
नोट पकड़ और लगा दे नारे
दूध पिला कभी गणेश जी को
कभी दिखा दे मीठा पानी
झूठ को भी सच बतलाने मेँ
मत करना तू आना कानी
लेखन तो है एक व्यापार
पैदल मत चल ले ले कार
बस ऐसा ही करता जा रे
अपनी जेबेँ भरता जा रे...
................
"बूँद"
20.04.2008
(पिथौरागढ़)
आज तक क्यों नहीं पढ़ने मिली हमें यह बेहतरीन कविता !
जवाब देंहटाएंसार्थक