आज फिर उदास है कमला
चाची ने डांट दिया
सुबह-सुबह....
चाची कहती है- “बंद कर अब
ये उछलकूद,
दिनभर अड्डू खेलना, गुट्टी
खेलना,
इस उम्र में लड़कियों को ये
सब शोभा नहीं देता,
घर के कामों में हाथ बंटा,
अब तू बड़ी हो गयी है,
पराये घर जायेगी, तो वहाँ
क्या करेगी,
ये गुट्टी खेलना, अड्डू
खेलना वहाँ नहीं चलेगा,
अभी से आदत डाल ले, कुछ घर
के काम सीख...”
चाची कहती रही....
और कमला ऐसे सुनते रही
जैसे उसने कोई बहुत बड़ा
अपराध किया हो
और उसे उसकी सजा सुनाई जा
रही हो....
आज पहली बार उसने ये सब
नहीं सुना था,
थोड़ा-थोड़ा सुनते आई थी वो
बचपन से,
सैकड़ों बार उसके कानों में
घोले गए थे
ये शब्द “कि वो बड़ी हो गयी
है”
और हर बार
इन शब्दों को अनसुना करके
वो फिर मगन हो जाया करती थी
अपनी सहेलियों के साथ
सैनदेवी-कैचीमाला खेलने
में.....
लेकिन आज उसे ऐसा लगा
जैसे उसकी आज़ादी छिन गयी है
माँ, चाची और आमा की डांट
उसे कभी भी इतनी बुरी नहीं
लगी
जितनी आज उसने महसूस की....
याद है उसे वो दिन
जब पिछले साल
पहली बार वो अपनी सहेलियों
के साथ
मेला देखने गयी थी
अपने वजीफे के जमा पैसों से
बहुत कुछ खरीदा था उसने
मेले से...
माँ के लिए- एक बिंदी का
पैकेट, एक जोड़ी बिच्छु, थोड़ा सिन्दूर,
आमा के लिए- एक नया हुक्का,
तीन तमाकू की पिंडी, कुछ बीड़ी के बण्डल
घर के लिए- आधा किलो मिसरी,
पावभर जलेबी और एक सुप्पा......
उसने अपने लिए भी कुछ ख़रीदा
था.....
शाम को जब वो घर पहुची
तो माँ के सामने उसने सारा
सामान फैला दिया
सिवाय अपनी चीज़ों के...
माँ ने पूछा- अपने लिए क्या
लायी..??
कमला ने डरते-डरते जवाब
दिया- एक जोड़ी पैंट-कमीज का कपडा...
माँ ने एक जोर का चांटा
मारा
कमला रो पड़ी....
उसने देखा था कई बार
अखबार के पन्नों में
लड़कियों को पैंट पहने....
उसे अच्छा लगता था......!
उसके छोटे-छोटे सपने
कब टूटते गए, उसे पता ही
नहीं चला,
आज वो सब दिन फिर से याद कर
रही है
जैसे कुछ हुआ ही न हो....
शाम का वक्त है.....
कमला उदास बैठी है,
चाची ओखल में धान कूट रही
है,
आमा आज भी बाहर हुक्का
गुडगुडा रही है,
माँ अभी नहीं लौटी खेतों से....!
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“बूँद”
२४ अप्रैल २०१२(पिथौरागढ़ )
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