भुखमरी, गरीबी, लाचारी के चित्र
कागजोँ के केनवास पर
कागजोँ के केनवास पर
उतरने लगे हैँ
कलम के ब्रुश को
शब्दोँ के रंगोँ मेँ डुबोकर
चित्रकारी करने की आदत ने
कविताओँ को
चित्रकारी करने की आदत ने
कविताओँ को
पेँटिँग्स बना दिया है...
और साथ ही साथ बदल गया है
हमारा नजरिया भी
अब कविताऐँ पढ़ी नहीँ जाती
देखी जाती हैँ...
"बूँद"
०१-जून-2011
डीडीहाट
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