बोलना और लिखना
जरुरी है
चीखने से पहले
जरुरी है
अपनी आह को
...आवाज़ देना
कलम की नोक से
माना कि काली है स्याही
जैसे जमा हुआ
खून काला हो जाता है
तीखी है
कलम की नोक
दिल मेँ उठती कसक की जैसी
किताबोँ के कानोँ मेँ
गूँजेगी एक दिन
स्याही से निकली आवाजेँ
किताबेँ चीखेँगी
आवाज़ पहुँचेगी
मुर्दा जिस्मोँ तक
फिर से जिँदा होँगे मुर्दे
दौड़ेगा तुम्हारा खून
उनकी रगोँ मेँ
तुम लिखते रहो
मुर्दे चीखेँगे एक दिन
तुम्हारी कलम से निकली आवाज़ोँ को
अपने ओठोँ से लगाये......
विक्रम सिंह नेगी "बूँद"
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