बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

सीख जायेँगे................ चीखना भी.......चिल्लाना भी












लड़ाई लंबी है
मगर लड़ना होगा
हाथ काँपेँगे
जिस्म डरेगा
ज़ुबान पर लगा ताला खोलना होगा...
...लिखना होगा

बोलना होगा
बोलते बोलते
सीख जायेँगे
चीखना चिल्लाना भी
माना कि चिल्लाना
शामिल नहीँ है अभी
सहज़ता मेँ
खून खौला नहीँ है
लेकिन
ठंडा भी नहीँ हुआ है
बोलने से खून दौड़ेगा
खून दौड़ेगा
तो गर्मी आयेगी
और धीरे धीरे
जब खून मेँ उबाल आयेगा
तो सीख जायेँगे
चीखना चिल्लाना भी
ज़िँदा होँगे
मुर्दा जिस्म
फिर से मरने के लिए
जैसे बुझने से पहले
उठ खड़ी होती है
दीपक की लौ........
...............
विक्रम  सिंह नेगी "बूँद"

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