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अलग अलग होते हुए भी
एक हो जाते हैँ
कई बार...
शब्द और आवाज़ !
समुद्र की
शांत लहरोँ की तरह
शब्द मौन हैँ...
मायने के साथ...!
और आवाज़
उड़ती है हवा मेँ
दिशाहीन
कौओँ की तरह
चिल्लाती है
निरर्थक... निरुद्देश्य..!
कभी-कभी
लिबास पहनने पड़ते हैँ
नग्न आवाज़ को
शब्दोँ के..!
मगर शब्द
कभी मोहताज़ नहीँ होते
आवाज़ के...!
.................
"बूँद"
जुलाई 2009
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