सोमवार, 31 जनवरी 2011

बातों से किसी का भी गला तर नहीं होता

 
सिलसिला ये ख़त्म उम्रभर नहीं होता 
बातों से किसी का भी गला तर नहीं होता 

निकली है कोई बात तो कोई बात नहीं है 
बातें हवा है और हवा में घर नहीं होता 

बातें तो निकल जाती हैं बात बात में 
बातों के पांव होते हैं पर सर नहीं होता 

तू मान या न मान मगर बात सही है 
खच्चर से कभी पैदा खच्चर नहीं होता 

बातों में वक़्त गुज़रता है जिनका सुबह शाम 
उनका कभी भी जवाँ मुक़द्दर नहीं होता 

बारिश में भीगकर नदी भी शोर करती है 
यूँ ही कोई सैलाब समंदर नहीं होता 

करना है कोई काम तो करना भी पड़ेगा 
दुनिया में कोई काम यूँ कहकर नहीं होता 

खुद पे जिन्हें यकीन हो वो मानते हैं बात 
उनकी जुबाँ पे कभी पर-मगर नहीं होता 

गर ठान ली है बात तो मुश्किल नहीं कुछ भी 
और बात सही है तो कोई डर नहीं होता 
बातों में जिसके दम है वही आदमी है "बूँद"
उस पर किसी की बात का असर नहीं होता

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विक्रम सिंह नेगी "बूँद"
शुक्रवार १५-०६-२००७ 
(पिथौरागढ़ )

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