बुधवार, 26 जनवरी 2011

आग चूल्हे से उठी है आज उत्तराखंड की..


आग चूल्हे से उठी है आज उत्तराखंड की...

धुंध अब होकर रहेगी साफ उत्तराखंड की...


इन धधकती चोटियोँ की एक लंबी है व्यथा...

पीर कितने सह रहे हैँ क्या किसी को है पता...

इसके आँगन मेँ चलाई जिसने गोली हारकर...

उसके मुँह पर तू तमाचा मारकर सबको बता...

आँच महलोँ तक गई है आज उत्तराखंड की...

धुंध अब होकर रहेगी साफ उत्तराखंड की...


देश की खातिर मरे और देश की खातिर जिए...

सुमन और गढ़वाली जैसे देश को हमने दिए...

हथियार हाथोँ मेँ उठाने का यही है वक्त अब...

भूखे प्यासे रोते बिलखते नौनिहालोँ के लिए...

हो गई है धार पैनी आज उत्तराखंड की...

धुंध अब होकर रहेगी साफ उत्तराखंड की...


ठीक करले आज तू अपने बहीखाते हिसाब...

हमको सीधे चाहिए अपने सवालोँ के जवाब...

मुट्ठियाँ ताने सड़क पे निकले हक़ के वास्ते...

क्रांतिवीरोँ को पढ़ा मत तू दलाली की किताब...

सूर्य निकला कट गई है रात उत्तराखंड की...

धुंध अब होकर रहेगी साफ उत्तराखंड की...!
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(चंदन सिँह नेगी)

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