शनिवार, 5 मई 2012

ये रिश्ता एक पहेली है....


सबकुछ है और कुछ भी नहीँ, ये रिश्ता एक पहेली है
हमदम है और नहीँ भी है, तू कैसी सखी-सहेली है?

दिल के क़रीब होकर भी क्योँ अनजानी सी लगती है?
साथ बिताए पल-छिन, फिर भी, दुल्हन नई-नवेली है.

तू बैठी है पास ही मेरे, फिर भी ये क्योँ लगता है?
जीवन नैया आज भँवर मेँ तन्हा और अकेली है.

धुंध है छाई रिश्तोँ मेँ और जीवन भूल-भुलैया है,
प्यार है तेरा परी सरीखा, दिल भी एक हवेली है.

रिश्ता तेरा-मेरा, जाने कैसा अज़ब-अनोखा है?
हाथोँ मेँ तेरा हाथ है, फिर भी, खाली मेरी हथेली है.
...............
"बूँद"
12 मई 2007
(पिथौरागढ़)

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