मंगलवार, 1 मार्च 2011

अभी अल्फ़ाज़ को साँसोँ की भट्ठी मेँ सुलगना है

 
अभी अल्फ़ाज़ को साँसोँ की भट्ठी मेँ सुलगना है
अभी भावोँ को धमनी मेँ, शिराओँ मेँ उबलना है
मेरी कविताऐँ ठंडे खून की स्याही से उपजी हैँ
अभी तो ख़ूँ की बूँदोँ से कोरे काग़ज़ को गलना है
जरा ठहरो अभी से दाद यूँ मत दो मेरे यारो
.अभी तो बूँद को भी काग़ज़ोँ के साथ जलना है
अभी अल्फ़ाज़ मेरे गुनगुने से पानी से लगते हैँ
उबलने दो इन्हेँ तेज़ाब की बूँदोँ मेँ ढलना है
 
दबी सहमी ये चिँगारी है ओढ़े राख़ की चादर
जलेगी आग भी, फिलहाल चिंगारी को पलना है

..."बूँद"
27 फरवरी 2011

6 टिप्‍पणियां:

  1. चुनिन्दा प्रस्तुति... शुभागमन...!
    हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसके दि. 18-2-2011 को प्रकाशित आलेख "नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव" का अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । शुभकामनाओं सहित...
    http://najariya.blogspot.com

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  2. अति सुंदर - शुभकामनाएं तथा शुभ आशीष

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  3. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  4. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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