सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

सूरदास लिख रहे हैं अब कबीर चाहिए.

सूरदास लिख रहे हैं अब कबीर चाहिए.
खून खत्म हो रहा है अब अबीर चाहिए.

आँख, कान, होंठ तो चुपचाप लौट आ गए.
घर की दीवारों को कलम और तीर चाहिए.

होंठ में ताकत कहाँ जो बात सच्ची कह सके,
मूक-बघीरों को तो काली लकीर चाहिए.

गली में जलती हुई इक झोपड़ी की आंच में,
पकने वाली भावना को शब्द खीर चाहिए.

...
"बूँद"
०२-०२-२०१३
०२:०९ अपरान्ह.

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