शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

जिह्वा भय से क्योँ कंपित है?

शंकित हैँ आशंकित हैँ
प्रतिपल प्रतिक्षण आतंकित हैँ

घनघोर निराशा है फैली
चहुँओर हताशा है फैली
सब मौन पड़े चुपचाप खड़े
अपने शब्दोँ से वंचित हैँ

कैसा मौलिक अधिकार मिला
मानव बौद्धिक लाचार मिला
अभिव्यक्ति व्यक्त नहीँ कर पाता
प्रतिशब्द सत्य पर दंडित है

सब कुछ आँखोँ के सम्मुख है
बस इसी बात का ही दुख है
नंगी आँखेँ सब देखती हैँ
जिह्वा भय से क्योँ कंपित है?
..............
"बूँद"
14.01.2005
(पिथौरागढ़)

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