शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

काले अक्षर: नवसृजन महोत्सव दिल्ली २०१६ (अखिल भारतीय कवि सम्मले...

काले अक्षर: नवसृजन महोत्सव दिल्ली २०१६ (अखिल भारतीय कवि सम्मले...

अवतार सिंह संधू "पाश" की कविता "सपने" को गाते हुए


नवसृजन महोत्सव दिल्ली २०१६ (अखिल भारतीय कवि सम्मलेन) में ग़ज़ल प्रस्तुति


मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

कहीं न जाना खबर दिखाने का वादा है.



एंकर बोली इस चैनल में सच ज्यादा है.
कहीं न जाना खबर दिखाने का वादा है.

एक खबर पर दो घंटे का हल्ला काटा,
बोली फिर विज्ञापन की थोड़ी बाधा है.

पांच मिनट में लौट के आई, बैठे रहना.
अब तक जो तुमने देखा वो सच आधा है.

दो घंटे में ही दिमाग का दही बन गया,
मट्ठा बनाके छोड़ेंगे, ये आमादा है.

अब भी टीवी से चिपका है, क्या गुलाम है,
किसने कहा देख "बूँद" किसने लादा है?

("बूँद")

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

प्रेम कवितायेँ



फूलों की खुशबू,
बारिश की बूंदों का नृत्य,
आँगन में चहचहाती
चिडियाँ की चूं-चूं
कोयल की कूँ-कूँ
शाखों पर लचकते आमों की
अंगड़ाई को महसूस करना उतना ही जरुरी है
जितना पेट की भूख और प्यास....

प्रेम के तमाम एहसासों को
कागजों पर उडेलना उतना ही जरुरी है
जितना घर की दीवारों पर
सुन्दर तस्वीरें टांगना, रंग-रोगन करना....

ख्वाबों की खिडकी से भीतर झांकना उतना ही जरुरी है,
जितना चाय में इलायची पीसकर डालना....

दर-असल हम नहीं लिखते
कुछ भी नहीं लिखते
दीवारें लिखवा जाती हैं...
उम्र और हालात अक्सर
कलम को ऊँगली पकड़कर चलना सिखाते हैं...

तमाम एहसासों की खुमारी में चूर होकर
हम अक्सर कागजों की पुताई करते हैं.....
ठीक वैसे ही जैसे घर को सुन्दर रखना जरुरी होता है....

नकली फूलों के गुलदस्ते रखने की आदत
कभी हमारा पीछा नहीं छोडती
नाटकीयता हमारे भीतर
इस तरह समां गयी है कि
सजीवता लाने की बेकार धुन में,
हम छिड़क देते हैं थोड़ा सा परफ्यूम उन फूलों में....

यह ठीक वैसे ही है,
जैसे घर की खिड़कियों पर रंग-बिरंगे परदे टांगना,
हमारी प्रेम कवितायेँ
ठीक वैसी हैं
जैसे
किसी झुग्गी के सामने खड़ा आलिशान महल......
...............

("
बूँद")

जलती हुई सिगरेट की तरह

यह साल भी खत्म हो गया
जलती हुई सिगरेट की तरह

थोड़ी सी आग 
साँसोँ मेँ घुली

बहुत सारा धुँआ  
बाहर निकला  

ठुड्डियाँ बची हुई हैँ
राख के ढेर मेँ
ओँठोँ पे रखे हुए 
ठंडे शब्दोँ को जलाने के लिए...
 
(बूँद)



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